Thursday, November 7, 2024
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चूड़धार चोटी पर 52वर्षों बाद शिरगुल महाराज के मंदिर में दिव्य ‘कुरुड़’ स्थापित

सिरमौर,जीडी शर्मा:- चूड़धार चोटी पर 52वर्षों बाद शिरगुल महाराज के मंदिर में दिव्य ‘कुरुड़’ स्थापित,हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर की सबसे ऊंची चोटी चूड़धार चोटी का नजारा बेहद आलौकिक व दैव्य था। 52 वर्षों के बाद शिरगुल महाराज के प्राचीन मंदिर में कुरुड़ की स्थापना का दिव्य अनुष्ठान संपन्न हुआ। दोपहर 12:56 बजे शिरगुल जी महाराज, जिन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है, के प्राचीन मंदिर में शांत महायज्ञ के पश्चात ‘कुरुड़’ स्थापना का कार्य शुरू हुआ। इस ऐतिहासिक धार्मिक आयोजन के साक्षी हजारों श्रद्धालु बने। शिरगुल महाराज की जय के उद्घोष से चूड़धार चोटी की वादियां गूंज उठी।

52 वर्षों बाद शिरगुल महाराज के मंदिर में दिव्य ‘कुरुड़’ स्थापित
इस दौरान पहले से तैयार कुरूड़ को श्रद्धालुओं द्वारा हाथोंहाथ उठाकर देव वादन और शिरगुल के जयकारों के साथ लाया गया और मंदिर के शिखर पर स्थापित कर दिया गया। हालांकि आयोजन को लेकर समय 11:00 से 1:00 बजे के बीच तय किया गया था, लेकिन माना जाता है कि देवता स्वयं मुहूर्त (auspicious time) तय करते हैं। जिसके चलते दोपहर 12:56 -12:57 बजे कुरुड़ स्थापना शुरू हुई।इस ऐतिहासिक धार्मिक आयोजन के गवाह चोटी पर मौजूद हजारों श्रद्धालु बने। साढ़े 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित चूड़धार चोटी का नजारा बेहद विहंगम व आलौकिक था। चोटी के करीब 2 से 3 किलोमीटर के दायरे में मौजूद श्रद्धालुओं ने इस दैव्य नजारे को देखा व शिरगुल महाराज की असीम शक्ति का अहसास लिया।ये धार्मिक आयोजन शिमला व सिरमौर जिला के धार्मिक इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण माना जा सकता है, क्योंकि शिरगुल महाराज दोनों जिलों के आराध्य देव हैं। इस धार्मिक आयोजन, जिसे शांत कहा जाता है का साक्षी बनने के लिए शिमला व सिरमौर से हजारों श्रद्धालु लगभग साढ़े 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित चूड़धार चोटी पहुंचे।यह महाय़ज्ञ धार्मिक आस्था व परंपरा के साथ-साथ स्थानीय संस्कृति का भी प्रतीक है, जिसे सफल बनाने के लिए हजारों श्रद्धालु व सेवक मिलकर कार्य कर रहे थे। शुक्रवार को सुबह 11 से 1 बजे का समय कुरुड़ स्थापना के लिए निर्धारित किया गया था।शिरगुल महाराज के मंदिर का भक्तिमयी नजारा
हालांकि तर्क यह दिया जा रहा है कि 11 अक्तूबर को होने वाला शांत महायज्ञ को 52 वर्षों बाद आयोजित किया जा रहा है। लेकिन एक दलील यह भी है कि भव्य मंदिर का निर्माण पहली बार हुआ है।

चोटी पर पहुंची करीब 25-30 हजार श्रद्धालुओं की भीड़ ने फिर साबित कर दिया कि आस्था के सामने कुछ भी नहीं है। चूडेश्वर सेवा समिति व स्थानीय प्रशासन के प्रयास भी बेहद सराहनीय रहे। चोटी पर श्रद्धालुओं के रहने, खाने-पीने की व्यवस्था की गई थी। इसके लिए प्रशासन ने टैंट की व्यवस्था कालाबाग  में की थी। यहां करीब 1000 टैंटों में लोगों ने चूड़धार की बर्फीली हवाओं के बीच शरण ली। शांत महायज्ञ के आयोजन को लेकर चौपाल, कुपवी, नेरवा व हामल आदि पंचायतों के लोग सक्रिय रहे।शिरगुल महाराज के मित्र गोगा वीर जी की उपस्थिति दर्ज….शिरगुल जी महाराज का गोगा जी पीर से भी गहरा नाता है। अद्भुत नजारा तब देखने को मिला, जब गोगा जी महाराज की खेल भी आई। दैव्य शक्ति का अनुभव कराने का एक विशेष पहलू है। गुगावीर जी, जो शिरगुल महाराज के मित्र माने जाते हैं, कि भी इस आयोजन में उपस्थिति दर्ज हुई, और उनके आगमन के साथ अद्भुत नजारा देखने को मिला।चूड़धार शांत महायज्ञ : देवताओं की पालकियों से मिलने कालाबाग के लिए चोटी से रवाना हुए शिरगुल महाराज

कुरुड़ यानि मुकुट….किसी भी देव प्रतिमा को मुकुट के बिना अधूरा माना जाता है। ठीक इसी तरह देवभूमि में किसी भी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा तब तक पूरी नहीं होती, जब तक कुरुड़ स्थापना न हो जाए। जब मुख्य मंदिर के शीर्ष पर कुरुड़ स्थापना होती है, तभी मंदिर का कार्य संपन्न माना जाता है। इसी परंपरा का निर्वहन 11 अक्तूबर को शिरगुल महाराज के ऐतिहासिक स्थली चूड़धार में किया गया।कुरुड़ के स्वागत में नतमस्तक हुई देव पालकियां…शिरगुल महाराज के पवित्र स्थल पर ‘शांत’ महायज्ञ का साक्षी बनने के लिए स्थानीय देवताओं में भी होड़ लगी रही। हालांकि वीरवार को चोटी पर श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला सुबह से शुरू हो गया था। देर रात तक भी श्रद्धालु घने जंगल में देव पालकियों को लिए शिरगुल महाराज का गुणगान करते चढ़ते रहे। 11 अक्तूबर की सुबह तक ये सिलसिला चलता रहा। इसी बीच परपंराओं के अनुसार देव पालकियों को कालाबाग में कुरुड़ के दर्शनों हेतु रखा गया।चट्टानों पर बैठे श्रद्धालुओं को गया हटाया….देव पालकियों व कुरुड़ के दर्शनों के लिए हजारों श्रद्धालु चोटी पर चारों और चट्टानों पर बैठे हुए थे। इसी बीच देव पालकियों ने लोगों को नीचे उतरने का इशारा किया, मानों कह रही हों कि शिरगुल महाराज के कुरुड़ से ऊपर किसी को नहीं बैठना चाहिए।मंदिर में दिव्य ‘कुरुड़’ स्थापित करतेखुशगवार मौसम ने भर दिया जोश…चूड़धार चोटी पर मौसम का मिज़ाज बदलते देर नहीं लगती, परंतु इस दिन मौसम पूरी तरह से श्रद्धालुओं के अनुकूल रहा। दिन भर धूप खिली रही, और ठंड का अहसास भी कम रहा, जिससे भक्तजन पूरे जोश और उमंग के साथ इस धार्मिक अनुष्ठान में सम्मिलित हुए।

दैव्य शक्ति का अहसास…
भव्य धार्मिक आयोजन में दैव्य शक्ति (divine power) का अहसास होना नई बात नहीं है। मंदिर परिसर में देवताओं के आगमन के साथ वातावरण बेहद भक्तिमय हो गया। हवन, पूजा-पाठ व मंत्रों की ध्वनि से पूरी घाटी गुंजायमान रही। भक्ति संगीत के कार्यक्रम चलते रहे। श्रद्धालु छोटी-छोटी मंडलियां बनाकर शिरगुल महाराज का गुणगान करते रहे। साथ ही कई लोगों में देवता की खेल भी देखने को मिली।यह धार्मिक आयोजन न केवल आस्था और परंपरा का प्रतीक था, बल्कि स्थानीय संस्कृति और लोगों के समर्पण का भी प्रतिबिंब था। श्रद्धालुओं और सेवकों के सामूहिक प्रयासों से यह आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। अंतिम जानकारी के अनुसार दोपहर 2 बजे के बाद भी अन्य स्थानों पर कुरुड़ स्थापित करने का कार्य जारी रहा।




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