शिमला टीना ठाकुर :-प्रामाणिक साक्ष्यों के आधार पर हिमाचल प्रदेश का इतिहास लिखा जाना आवश्यक : राजा भसीन आक्रांताओं के इतिहास में संशोधन जरूरी : डॉ. चेतराम गर्ग
विश्व के लगभग सभी देशों ने स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद अपनी भाषा, संस्कृति, सभ्यता, परंपरा और इतिहास तथा समाज व्यवस्था को अक्षुण बनाए रखने के लिए सत्य और वास्तविक घटनाओं के आधार पर अपने देश का गौरवपूर्ण इतिहास रचा है और वही इतिहास स्कूलों, विश्वविद्यालय में पढाया जाता है। परंतु दुर्भाग्य से भारतवर्ष एकमात्र ऐसा देश है जो सदियों से चली आ रही वैश्विक ज्ञान परंपरा के बावजूद विदेशी आक्रांताओं विधर्मियों के इतिहास को महिमामंडित करके पढ़ा रहा है जबकि भारत के असंख्य क्रांतिकारियों ने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्यौछावर करते हुए अपनी भाषा, संस्कृति और गौरवपूर्ण इतिहास का स्वप्न देखा था।भारत के इतिहास को विकृत करने के लिए अंग्रेजों और मुगलों द्वारा विधर्मियों आक्रांताओं को महान् बताया गया और भारतीय ज्ञान परंपरा तथा महापुरुषों के उज्ज्वल चरित्र को कलंकित करने का प्रयास किया गया। इसलिए अधिकांश भारतीयों को भारत की बजाय विदेशी संस्कृति अच्छी लगती है, यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। इसीलिए आक्रांताओं के महिमामंडित इतिहास में संशोधन करके उसको भारतीय परिप्रेक्ष्य में सत्य घटनाओं और ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर लिखने के लिए शोध संस्थान नेरी द्वारा हिमाचल प्रदेश का बृहद् इतिहास परियोजना पर भारतीय इतिहास परिषद दिल्ली के सहयोग से अनुसंधान कार्य किया जा रहा है।
ठाकुर राम सिंह इतिहास शोध संस्थान नेरी हमीरपुर के निदेशक डा. चेतराम गर्ग ने कहा कि भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाओं की कथित व्याख्याओं तथा सत्य घटनाओं के विपरीत मूलभूत विमर्श को झुठलाने की कोशिश का संज्ञान लिया जाना चाहिए। क्षेत्रीय इतिहास लेखन में शोध प्रविधि’ के आयोजन का उद्देश्य हिमाचल प्रदेश के इतिहास लेखन की गहन व विस्तृत समझ को विकसित करना समय की मांग है। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली एवं ठाकुर रामसिंह इतिहास शोध संस्थान नेरी, हमीरपुर (हि.प्र.) के संयुक्त तत्त्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला 07-08 सितम्बर, 2024 को क्षेत्रीय इतिहास लेखन में शोध प्रविधि : हिमाचल प्रदेश के संदर्भ में हिमरश्मि परिसर, विकास नगर शिमला में आयोजित किया गया। कार्यशाला के दूसरे सत्र में प्रसिद्ध इतिहासकार नेमचंद ठाकुर ने इतिहास लिखने में नए प्रमाणों को जुटाने तथा उनका उपयोग करने की भी सलाह दी। इस अवसर पर डा. ओम प्रकाश शर्मा, डॉ अंकुश भारद्वाज, डॉ शिव भारद्वाज,डॉ राजकुमार, डॉ राकेश कुमार शर्मा और बारु राम ठाकुर ने हिमाचल प्रदेश के युग युगीन इतिहास, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक इतिहास की समीक्षात्मक रूपरेखा भी प्रस्तुत की। कार्यक्रम में प्रख्यात इतिहासकार राजा भसीन ने अपना व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कहा कि हिमाचल प्रदेश में इतिहास लेखन के लिए विदेशी विद्वानों की पुस्तकों और साक्ष्यों को आधार बनाया जाता रहा है जबकि नए अनुसंधान कार्यों के अंतर्गत अब पुरातात्विक साक्ष्य भी मौजूद हैं जिनके आधार पर इतिहास को संशोधित करते हुए नए तथ्यों के साथ लिखने की आवश्यकता है।
राजा भसीन ने कहा कि हिमाचल प्रदेश की पारंपरिक लोक संस्कृति में मौजूद पहलुओं को आधार बनाकर हिमालय क्षेत्र के सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक इतिहास को वैज्ञानिक और अनुसंधानपूर्ण विधि से लिखने की परियोजना एक महत्वपूर्ण कदम है। हिमाचल में अभी तक राजनीतिक इतिहास ही लिखा गया है।आर्थिक सर्वेक्षण और पर्यटन संबंधी तथा यात्रा संस्मरण से संबंधित कुछ दस्तावेज भी उपलब्ध होते हैं। कुछ भारतीय और हिमाचल प्रदेश के विद्वानों ने भी इतिहास लेखन में महत्वपूर्ण कार्य किया है। इसलिए निरंतर अनुसंधान और विश्लेषण आवश्यक है। लोक साहित्य के अंतर्गत भी इतिहास स्रोत के रूप में गंभीर विवेचना के लिए भी पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। मौजूदा प्रमाणों के आधार पर इतिहास के तथ्यों की जांच परख की जानी जरूरी है। हिमालय की प्राचीन एवं पौराणिक जातियों तथा समुदायों के इतिहास, परंपरा और सभ्यताओं का प्रामाणिक एवं वैज्ञानिक आधार पर अध्ययन किया जाना अपेक्षित है। इसलिए इतिहास लेखन में लोक की उपेक्षा नहीं की जा सकती।
हिमाचल प्रदेश का बृहद् इतिहास में अनुसंधान अधिकारी डा नीलम कुमारी, ऋषि भारद्वाज, केहर सिंह,रोहित मांडव ने भी परिचर्चा में भाग लिया तथा इतिहास लेखन के लिए एकत्रित दस्तावेजों और संदर्भ ग्रंथों की जानकारी सांझा की। इतिहासकार विद्वानों का कहना है कि हिमाचल प्रदेश का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना कि इस धरती पर मानवोत्पति। हिमाचल का इतिहास वेदों, महाकाव्यों तथा पुराणों में खोजा जा सकता है। ऋग्वेद में वर्णित नदियों में असिकिनी, परुष्णी, अर्जिकिया, सुतुद्री हिमाचल प्रदेश में बहती हैं। इस क्षेत्र के मूल निवासी- कोल, किरात, किन्नर, नाग, खश, गंधर्व व यक्ष आदि जातियाँ हैं। त्रिगर्त, औदुम्बर, कुल्लुत तथा कुनिन्द गणराज्यों एवं जनपदों से यहाँ का समाज संगठित हुआ। हिमाचल का इतिहास सिन्धु-सरस्वती सभ्यता, गणराज्यों का उदय, रियासतों का प्रादुर्भाव, सल्तनत और मुगलकाल, ब्रिटिश शासन काल एवं स्वंतत्रता संग्राम का कालखंड तथा वर्तमान हिमाचल का उदय आदि चरणों में विभाजित है। हिमाचल प्रदेश के स्रोतों की जानकारियां प्राचीन साहित्य, प्राचीन काल के सिक्कों, शिलालेखों, साहित्य, विदेशियों के यात्रा वृत्तांत और राजपरिवार की वंशावलियों के अध्ययन से प्राप्त होते हैं। लोक साहित्य व लोक इतिहास मौलिक स्रोतों से भरा पड़ा है। ऐतिहासिक, भौगोलिक, पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से प्रदेश में शोध की अपार संभावनाएं हैं। इसी दृष्टि से हिमाचल प्रदेश का बृहद् इतिहास परयोजना महत्वपूर्ण सामयिक तथा प्रासंगिक है।
वर्तमान में हिमाचल के अतीत तथा वर्तमान विषयों पर आधारित प्रमाणिक इतिहास की आवश्यकता को अनुभव करते हुए विद्वानों ने कहा कि इतिहास ही हमें अतीत से परिचित करवाता है, वर्तमान को अवलोकन का अवसर देता है तथा भविष्य में हमारी योजनाओं के निमित हमें वैचारिक आधार भी प्रदान करता है। नए साक्ष्यों के लगातार सामने आने और नई क्षेत्रीय पहचान बनाने तथा तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य स्थापित करने की आवश्यकता के कारण पिछले कुछ दशकों में लोक इतिहास लेखन की प्रवृति बढ़ी है। क्षेत्रीय इतिहास लगातार राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय इतिहास लेखन की प्रवृत्ति को प्रभावित कर रहा है। इसलिए क्षेत्रीय इतिहास का लेखन एवं इसके लिए प्रयुक्त शोध विधियों पर विचार-विमर्श करना अत्यन्त आवश्यक है। देश के हर प्रान्त व क्षेत्र का अपना इतिहास है और सभी प्रान्तों व क्षेत्रों का इतिहास विविध होने पर भी एक-दूसरे से परस्पर सम्बंधित हैं।
शोध संस्थान नेरी हमीरपुर द्वारा भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में क्षेत्रीय इतिहास लेखन में शोध प्रविधि : हिमाचल के संदर्भ में आयोजित कार्यशाला में डॉ. शोभा मिश्रा, नेम चंद ठाकुर, विकास बन्याल, डा मोहन शर्मा , करतार चंद और डॉ. सन्नी अटवाल, डा. कर्म सिंह भी परिचर्चा में उपस्थित रहे।