Thursday, February 6, 2025
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सतलुज घाटी पर डॉ. हिमेन्द्र बाली की दो पुस्तकों का कुमारसैन के सैंज मेंं हुआ विमोचन

ब्यूरो रिपोर्ट:-

सतलुज घाटी पर डॉ. हिमेन्द्र बाली की दो पुस्तकों का कुमारसैन के सैंज मेंं हुआ विमोचन सतलुज घाटी के इतिहास एवम् संस्कृति पर डॉ. हिमेन्द्र बाली द्वारा लिखित दो पुस्तकें- सतलुज घाटी की सांस्कृतिक परम्पराएं और सतलुज घाटी का सांस्कृतिक वैभव का 10अक्तूबर 2024 गुरूवार को कुमारसैन उपमण्डल के अंतर्गत अतुल रिजेन्सी सैंज में उपमण्डलाधिकारी (नागरिक) सुरेन्द्र मोहन ने विमोचन किया। सुकेत संस्कृति साहित्य एवम् जनकल्याण मंच द्वारा आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह में हिमाचल प्रदेश के  हिमालयी संस्कृति के प्रतिष्ठित विद्वानों ने भाग लिया। डॉ. हिमेन्द्र बाली पश्चिमी हिमालयी संस्कृति,कला एवम् लोकपरम्पराओं पर पिछले साढ़े तीन दशक से मौलिक शोध कार्य  में निरन्तर जुड़े रहे हैं। डॉ. बाली के शोध आलेख देश-विदेश की पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशित होते रहे हैं। सतलुज नदी का ऋग्वैदिक नाम शुतुद्रि रहा है जो उस काल में यमुना,सरस्वती एवम् गंगा जैसी  पवित्र नदियों की श्रेणी में सम्मिलित रही है।  दोनों पुस्तकों में सतलुज नदी के दोनों तटों पर अवस्थित हिमाचल प्रदेश के छ: जिलों की सांस्कृतिक परम्पराओं और देव आस्थाओं का विशद वर्णन किया गया है।

पुस्तकों के लोकार्पण समारोह का आरम्भ मां सरस्वतीवंदन व दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ। तदोपरान्त डॉ. हिमेन्द्र बाली ने अपनी दोनों पुस्तकों का संक्षिप्त और सारगर्भित परिचय विद्वानों को दिया। उन्होने सतलुज नदी के वैदिक महत्व को रेखांकित करते हए उन्होने  कहा कि लोकाख्यान में इस नदी घाटी में यह नदी गंगा नदी की तरह पवित्र और तापों को हरण करने वाली है। इस  सदानीरा नीलवर्णा व वेगवती नदी का उद्गम कैलाश मानसरोवर के समीप राक्सताल से हुआ है और यह नदी पौराणिक नगर शौणितपुर (सराहन),रामपुर  बुशहर, महाभारतकालीन राज्य कुलिंद,सुकुट और चंदेल वंशजों के क्षेत्र कहलूर राज्य से होकर गुजर कर यहां की संस्कृति को प्रभावित करती आयी है। सतलुज घाटी क्षेत्र में आदिकाल में नागों की सुदृढ़ सत्ता रही है। ऋग्वैदिक काल में पश्चिमी हिमालय में आर्यों के  आगमन से यहां के शक्तिशाली नागों का उनके   साथ लम्बा संघर्ष हुआ।  सतलुज व गिरि क्षेत्र के अंतर्गत श्रीपटल निरमण्ड, सुकेत,बड़ागांव शांगरी और सिरमौर क्षेत्र में आज भी बूढी दिवाली के अवसर पर नाग-आर्य संघर्ष की घटना को आनुष्ठानिक रूप से निरूपित किया जाता है। डॉ. हिमेन्द्र बाली ने कहा कि सतलुज घाटी में सृष्टि के आरम्भ से ही नाग,शैव,शाक्त,वैष्णव,सौर एवम् गाणपत्य मत प्रचलित रहे हैं। यही कारण है कि यहां देव समुदाय में पंचदेव पूजा के दर्शन होते हैं और मंदिरों के कलात्मक स्वरूप में मतों का अंकन उत्कीर्णत्व व विग्रहों में देखा जा सकता है।  यहां आयोजित देवोत्सव व लोकोत्सव में दैवीय सत्ता के प्रति सम्मान का भाव द्रष्टव्य है। डॉ. हिमेन्द्र बाली ने कहा कि सतलुज घाटी के धार्मिक अनुष्ठानों,सांस्कारिक परम्पराओं और सामाजिक क्रियाकलापों में प्राक् वैदिक और वैदिक संस्कृति के दिग्दर्शन होते हैं। उन्होने कहा कि पुस्तकों में सतलुज घाटी की परम्पराओं व हिमालयी गरिमा को उद्घाटित किया गया है।

पुस्तकों पर समीक्षा करते हुए संस्कृति मर्मज्ञ दीपक शर्मा ने कहा कि पुस्तक में यहां कि भौगोलिकता,इतिहास,परम्पराओं और कलात्मक पक्ष को लोकसाहित्य के संदर्भित साक्ष्यों और शास्त्रीय प्रमाणों को सुसंगित पर पुस्तक में अभिहित किया गया है। डॉ. हिमेन्द्र बाली ने अपने लम्बे शोध के अनुभव को मौलिक अन्वेषण के माध्यम से  पुस्तकों में उद्घाटित किया है।पुस्तकों के विषय में हिमाचल प्रदेश कला भाषा संस्कृति अकादमी के पूर्व सचिव डॉ. कर्म सिंह ने कहा कि डॉ. हिमेन्द्र बाली ने क्षेत्र  के इतिहास व परम्पराओं पर मौलिक व प्रमाणिक कार्य किया है जो शोधार्थियों,पाठकों व जिज्ञासुओं के लिये बहुपयोगी सिद्ध होगा। हमें इस प्रकार के प्रयासों से प्रेरित होकर लोक संस्कृति के संवर्द्धन व संरक्षण के लिये सदैव प्रयासरत रहना चाहिए।डॉ. हिमेन्द्र बाली की पुस्तकों पर अपने विचार प्रकट करते हुए समारोह के अध्यक्ष व नैरी शोध संस्थान के निदेशक डॉ. चेतराम गर्ग  ने कहा कि आज इतिहास को भारतीय परिप्रेक्ष्य में प्रमाणिक साक्ष्यों के आधार पर लिखा जाना चाहिए। डॉ. हिमेन्द्र बाली ने सतलुज घाटी के सांस्कृतिक इतिहास पर शोधपरक पुस्तकों को लेखनीबद्ध कर यहां के ऐतिहासिक व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को पाठकों को सुलभ कर साहसिक कार्य किया है।पूर्व प्रधानाचार्य व कथाकारा सुरभि बाली रैना, जो लेखक की धर्म पत्नी है, ने साहित्य व संस्कृति के लेखन को तपस्या की संज्ञा देकर कहा कि समाज के चारित्रिक निर्माण में इतिहास के निरपेक्ष लेखन की अहम् भूमिका है।

पुस्तकों में अंतर्निहित शोध आलेखों के विषय में मुख्य अतिथि एसडीएम सुरेन्द्र मोहन ने कहा कि डॉ. हिमेन्द्र बाली ने सतलुज घाटी के इतिहास व संस्कृति पर शोधपरक कार्य कर युवा पीढ़ी को अपने गौरवमयी अतीत को समझने के लिये सुअवसर प्रदान किया है। उन्होने कहा कि चरित्र निर्माण में अपनी  सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के पोषण की अहम् भूमिका है। अत: युवा पीढ़ी को ऐसी मौलिख शोधपरक पुस्तकों को पढ़कर अपने चरित्र निर्माण का सद्प्रयास करना चाहिए।दूसरे सत्र में लोक गीत व  लोकसंगीत गायन का आयोजन किया गया। इस सत्र में बड़ागांव शांगरी के  लोककलाकार  व  लोककथाकार 90 वर्षीय रामानंद शर्मा ने पारम्परिक लोकगीत व शिवरात्रि गीत बारहमासी का गायन कर दर्शकों को अभिभूत किया।  इसी कड़ी में लोकगीत व लोकसंगीत के मर्मज्ञ प्रो. गोपालकृष्ण भारद्वाज ने सतलुज घाटी के ऐतिहासिक लोकगीतों को गाकर दर्शकों को अभिभूत कर दिया।  डॉ. भारद्वाज ने विलुप्त होते ऐतिहासिक गीतों का गायन कर सत्र में उपस्थित दर्शकों को विमोहित कर दिया।   निरमण्ड से आयी दीपक शर्मा की सपत्नी सुलोचना शर्मा ने अम्बिका माता निरमण्ड  की लोकसंस्कृति पर आधारित अलभ्य लोकस्तुति गाकर सभी को अभिभूत कर दिया।

लोकार्पण के इस कार्यक्रम में आनी से आये शिक्षाविद श्यामानंद, बड़ागांव शांगरी से आये लोक संस्कृतिविज्ञ व ढोलकवादक दीप राम शर्मा,लोकसंगीत के साधक ऋषि शर्मा, निरमण्ड के टिकरी गांव के शिक्षक व संस्कृतिविज्ञ रजत शर्मा, आनी के वरिष्ठ पत्रकार व लेखक छविन्द्र शर्मा, पत्रकार शिवराज शर्मा, निरमण्ड के वरिष्ठ लेखक दीपक शर्मा की धर्मपत्नी, साहित्यकार शीतलनधैक, शोधार्थी छवीन्द्र शर्मा गगन, भगत राम, शांगरी के देवसंस्कति से जुड़े जानकार बृज भूषण, शिक्षाविद्  सतीश शर्मा,लेखक के पुत्र अरिहंत बाली व पुत्री लता देवी व अन्य लोकसंस्कृति दर्शकरूप में उपस्थित रहे।कुमारसैन में  सतलुज घाटी संस्कृति व इतिहास  पर आधारित पुस्तकों के लोकार्पण का   प्रथम आयोजन था।  पुस्तक लोकार्पण के इस समारोह का  विद्वतापूर्ण  मंच संचालन हिमालयन डिजिटल मीडिया के प्रधान सम्पादक हितेन्द्र शर्मा ने किया। उन्होने सतलुज घाटी की लोकसंस्कृति व इतिहास पर अपनी सारगर्भित टिप्पणियों से विद्वानों को अवगत कराया।

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