नगनौली न्यूज :-श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ – चतुर्थ दिवस,गाँव नगनौली के कृष्ण कुंज मोहल्ला में श्री मदभागवत कथा का आयोजन समस्त पंवार परिवार की ओर से करवाई जा रही श्री मदभागवत कथा के चतुर्थ दिवस श्री गुरु आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री गौरी भारती जी ने बताया कि भागवत जीवन का दर्पण है। यह जीवन की एक आदर्श संहिता है। इसके केवल श्रवण मात्र से कल्याण नहीं, बल्कि आचरण में लाने पर ही भागवत फलदायी होगा। नारद जी ने किस प्रकार मंत्रविद् से आत्मविद् होने का सफर तय किया। स्वयं को केवल शास्त्र ग्रंथों के पठन-पाठन तक ही सीमित नहीं रखा। उनका मंथन कर सार भाव को ग्रहण किया
और फिर आत्मज्ञान की प्राप्ति हेतु ब्रह्मनिष्ठ गुरु के समक्ष अपनी गुहार रख दी। तब कहीं जाकर महान शास्त्र ग्रंथों का पठन-पाठन उनके जीवन में सार्थक सिद्ध हो पाया। ठीक उसी प्रकार जैसे जैसे किसी फल के रंग, रूप, आकार व स्वाद के विषय में पुस्तक से एकत्र की गई जानकारी तभी लाभप्रद सिद्ध होती है, जब जानकारी के आधार पर वैसे ही फल को ग्रहण कर लिया जाए। इन्हीं दिव्य प्रेरणाओं के साथ कथा व्यास साध्वी गौरी भारती जी ने चर्तुथ दिवस का शुभारंभ किया। आज के कथा प्रसंगों में प्रभु श्रीकृष्ण जन्म प्रसंग शामिल था, जिसे नन्दोत्सव के रूप में मनाया गया। जिसमें सभी नर-नारी और बच्चों ने खूब आनन्द लिया। बहुत सारे बच्चे कृष्ण के सखा बनने की इच्छा से सज-धज कर पीले वस्त्र पहन कर इस उत्सव में शामिल हुए। नन्दोत्सव की छटा अद्भुत थी! ऐसा प्रतीत होता था मानो समूचा पंडाल ही गोकुल बन गया हो एवं सभी नर-नारी गोकुलवासी! केवल ग्वाल-बालों के रूप में सजे बच्चों ने ही नहीं बल्कि सभी
आगंतुकों ने कृष्ण जन्म के अवसर पर प्रभु कृपा का प्रसाद पाया। श्रीकृष्ण जन्म के अवसर पर इस प्रसंग में छुपे हुए आध्यात्मिक रहस्यों का निरूपण करते हुए साध्वी जी ने बताया जब-जब इस धरा पर धर्म की हानि होती है, अधर्म, अत्याचार, अन्याय, अनैतिकता बढ़ती है, तब-तब धर्म की स्थापना के लिए करुणानिधान ईश्वर अवतार धारण करते हैं, श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण भी कहते हैं -यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
प्रभु का अवतार धर्म की स्थापना के लिए, अधर्म का नाश करने के लिए , साधु-सज्जन पुरुषों का परित्रण करने के लिए और असुर, अधम, अभिमानी, दुष्ट प्रकृति के लोगों का विनाश करने के लिए होता है।साध्वी जी ने बताया कि धर्म कोई बाहरी वस्तु नहीं है। धर्म वह प्रक्रिया है जिससे परमात्मा को अपने अंतर्घट में ही जाना जाता है। स्वामी विवेकानन्द कहते हैं- त्मसपहपवद पे जीम तमंसप्रंजपवद वि हवक अर्थात् परमात्मा का साक्षात्कार ही धर्म है। जब-जब मनुष्य ईश्वर भक्ति के सनातन-पुरातन मार्ग को छोडक़र मनमाना आचरण करने लगता है तो इससे धर्म के संबंध में अनेक भ्रांतियाँ फैल जाती हैं। धर्म के नाम पर विद्वेष, लड़ाई-झगड़े, भेद-भाव, अनैतिक आचरण होने लगता है तब प्रभु अवतार लेकर इन बाहरी आडंबरों से त्रस्त मानवता में ब्रह्मज्ञान के द्वारा प्रत्येक मनुष्य के अंदर वास्तविक धर्म की स्थापना करते हैं। कृष्ण का प्राकट्य केवल मथुरा में ही नहीं हुआ, उनका प्राकट्य तो प्रत्येक मनुष्य के अंदर होता है, जब किसी तत्वदर्शी ज्ञानी महापुरुष की कृपा से उसे ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
जिस प्रकार कृष्ण के जन्म से पहले घोर अंधकार था, कारागार के ताले बंद थे, पहरेदार सजग थे, और इस बंधन से छूटने का कोई रास्ता नहीं था। ठीक इसी प्रकार ईश्वर साक्षात्कार के आभाव में मनुष्य का जीवन घोर अंधकारमय है। अपने कर्मों की काल कोठरी से निकलने का कोई उपाय उसके पास नहीं है। उसके विषय-विकार रूपी पहरेदार इतने सजग होकर पहरा देते रहते हैं और उसे कर्म बंधनों से बाहर नहीं निकलने देते।परन्तु जब किसी तत्वदर्शी महापुरुष की कृपा से परमात्मा का प्राकट्य मनुष्य हृदय में होता है, तो परमात्मा के दिव्य रूप ‘प्रकाश’ से समस्त अज्ञान रूपी अंधकार दूर हो जाते हैं। विषय-विकार रूपी पहरेदार सो जाते हैं, कर्म बंधनों के ताले खुल जाते हैं और मनुष्य की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। इसलिए ऐसे महापुरुष की शरण में जाकर हम भी ब्रह्मज्ञान को
प्राप्त करें तभी हम कृष्ण जन्म प्रसंग का वास्तविक लाभ उठा पाएंगे। कथा में विशेष रूप में राणा रणजीत सिंह,जसपाल जसा,अश्वनी जसवालरामप्रसाद,जगजीत सिंह मनकोटिया,जगदीश पाल सिंहकश्मीर सिंह,कुलदीप पाल सिंह सतपाल सिंह, गुरबक्श परमार पंडित जगन्नाथ जी मास्टर राकेश,अश्वनी प्रधान भदसाली, कैप्टन विजय शंकर, विक्रम सिंह,जसवंत सिंहसोमनाथ बस्सी विचित्र सिंह बस्सी, गुरबिंदर सिंह , इकबाल सिंह, पंवार परिवार के सभी सदस्य व भारी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे l