गुरु की महिमा का बखान करते हुए कहा कि गुरु विष्णु भी है क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है। गुरु साक्षात् महेश्वर है क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संहार भी करता है। कथा वाचक ने कहा कि संत कबीर ने कहा है कि ‘ हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ‘। उन्होंने कहा कि शास्त्रों में गुरु का अर्थ बताया है कि गु का अर्थ अंधकार या मूल अज्ञान और रू का अर्थ उसका निरोधक। उन्होंने कहा कि गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात दो अक्षरों से मिलकर बने गुरु शब्द का अर्थ अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को “गुरु” कहा जाता है।
कृष्ण कन्हैया जोशी जी ने कृष्ण बाल लीला, माखन चोरी व गोवर्धन पूजा के प्रसंग का कथा में वर्णन किया। उन्होंने कहा कि कृष्ण ने बृजवासियों को मूसलाधार बारिश से बचाने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएं उसकी ओट में सुखपूर्वक रहे।
भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा। इसके बाद जोशी जी ने श्रीकृष्ण भगवान के माखन चोरी की कथा सुनाई। कथा सुनकर प्रभु भक्त भाव विभोर हो गए। श्री कृष्ण की माखन चोरी की लीला का वर्णन करते हुए कहा कि जब श्रीकृष्ण भगवान पहली बार घर से बाहर निकले तो उनकी बृज से बाहर मित्र मंडली बन गई। सभी मित्र मिलकर रोजाना माखन चोरी करने जाते थे। सब बैठकर पहले योजना बनाते कि किस गोपी के घर माखन की चोरी करनी है।
श्रीकृष्ण माखन लेकर बाहर आ जाते और सभी मित्रों के साथ बांटकर खाते थे। भगवान बोले कि जिसके यहां चोरी की हो उसके द्वार पर बैठकर माखन खाने में आनंद आता है। माखन चोरी की लीला का बखान करते हुए उन्होंने भगवान कृष्ण के बाल रूप का सुंदर वर्णन किया। उन्होंने बताया कि भगवान कृष्ण बचपन में नटखट थे। भगवान श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं से जुड़ी कथा को सुनने व अधिकाधिक संख्या में कथा में भागीदार बनने के लिए भक्तों में भारी उत्साह देखने को मिल रहा है।इस अवसर पर नरेन्द्र शर्मा,हनी राजा, राजेश खेड़ा, रजनी खेड़ा व समस्त श्रद्धालुओं ने इस कथा का आंनद लिया।