हमीरपुर ऊषा चुहान :- मनमाने फैसले को लेकर अदालत में भी हो रही सुक्खू सरकार की फजीहत: राजेंद्र राणा मित्रों को एडजस्ट करने के लिए ही बना रखा है वाटर सेस कमिशन हमीरपुर ,30 अगस्त : पूर्व विधायक राजेंद्र राणा ने कहा है कि मनमाने फैसले लेने के लिए मशहूर हिमाचल की सुक्खू सरकार को वकीलों की लंबी चौड़ी फौज पर भारी भरकम फीस खर्च करने के बावजूद कोर्ट में फजीहत का सामना करना पड़ रहा है।
आज यहां जारी एक बयान में राजेंद्र राणा ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में सुक्खू सरकार द्वारा तमाम नियमों को तक पर रखकर बिजली परियोजनाओं पर वॉटर सेस लगाने के फैसले की अधिसूचना को पहले प्रदेश हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था और अब सुप्रीम कोर्ट में जाने के बावजूद राज्य सरकार को कोई बड़ी राहत नहीं मिल पाई है। हाई कोर्ट ने तो वाटर सेस से जुड़े कानून को ही असवैंधिक करार दिया था।
राजेंद्र राणा ने कहा कि सत्ता में आने के बाद सुक्खू सरकार ने हिमाचल प्रदेश में 173 बिजली परियोजना पर वाटर सेस लगाया था. जिस पर 25 अक्टूबर 2023 को केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने भी सभी राज्यों को पत्र लिखकर वॉटर सेस को अवैध और असंवैधानिक बताया था. कहा था कि बिजली उत्पादन पर वॉटर सेस और अन्य शुल्क लगाने के लिए राज्य सरकारों के पास अधिकार नहीं है. परंतु केंद्र सरकार के निर्देशों की अनदेखी करते हुए सुक्खू सरकार ने विधानसभा में वाटर सेस पर विधेयक पारित कर राज्य जल उपकर आयोग भी बनाया था, जिसमें उन्होंने अपने कई चहेतों को एडजस्ट करके उन्हें गाड़ी, बंगला, वेतन भत्ते और नौकर चाकर की सुविधा प्रदान कर दी थी। जबकि हिमाचल प्रदेश में इस आयोग की जरूरत ही नहीं थी। उन्होंने कहा 5 मार्च को हाईकोर्ट ने भी इसे असंवैधानिक करार दिया था।
उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाये जाने के बावजूद सरकार को पूरी तरह राहत नहीं मिल पाई है, जिससे साफ जाहिर है कि वाटर सेस कमीशन का फैसला असंवैधानिक था। उन्होंने कहा कि इस कमीशन को तत्काल भंग किया जाना चाहिए और प्रदेश की जनता के टैक्स की कमाई की लूट घसूट रोकी जानी चाहिए।
राजेंद्र राणा ने कहा कि प्रदेश को अपनी जागीर समझकर मुख्यमंत्री सुक्खू मनमाने और जनविरोधी फैसले ले रहे हैं।
उन्होंने कहा है कि अपने कैबिनेट मंत्रियों, मुख्य संसदीय सचिवों ,निगम बोर्डों के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और कांग्रेस विधायकों का दो महीने का वेतन लंबित रखा जाना जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए एक नौटंकी मात्र है क्योंकि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की कार्यशैली और आर्थिक कुप्रबंधन ने प्रदेश को बर्बादी के कगार पर ला खड़ा किया है। राजेंद्र राणा ने कहा कि 2 महीने का वेतन लंबित रखने की बजाय मुख्यमंत्री को तत्काल कुर्सी छोड़ देनी चाहिए क्योंकि वह प्रदेश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने राज्य में आर्थिक इमरजेंसी के हालात पैदा कर दिए हैं। राजेंद्र राणा ने कहा कि मुख्यमंत्री अपनी नाकामयाबी का ठीकरा दूसरों पर फोड़कर अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकते। उन्होंने कहा मुख्यमंत्री ना तो कांग्रेस पार्टी द्वारा चुनाव में जनता को दी गई गारंटियां लागू कर पा रहे हैं और ना ही अपने वायदे पूरे कर पा रहे हैं। प्रदेश का सारा खजाना उन्होंने अपने मित्रों पर ही लुटा दिया है और अब दो माह का वेतन लंबित रखने की नौटंकी करके वह एक तरह से प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों को यह छिपा हुआ संदेश देना चाहते हैं कि उन्हें महंगाई भत्ते और एरियर के बारे में भूल जाना चाहिए।
राजेंद्र राणा ने कहा कि मुख्यमंत्री सुक्खू प्रदेश को आर्थिक दिवालियापन पर ले जाने के बाद अब ऐसे ऐसे वक्तव्य दे रहे हैं जिसका देश के मीडिया में मजाक बन रहा है। उन्होंने कहा अरुणाचल के बाद जनसंख्या के अनुपात में हिमाचल प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य बन गया है जिसने कर्ज लेने में रिकॉर्ड बना दिया है। राजेंद्र राणा ने कहा कि मुख्यमंत्री सुक्खू का एकमात्र लक्ष्य अपनी मित्र मंडली को सरकार में एडजस्ट करके उन पर खजाना लूटाना है और फिर आर्थिक संकट का रोना भी रोना है। राजेंद्र राणा ने तंज करते हुए कहा कि प्रदेश की जनता ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय मीडिया के सामने भी मुख्यमंत्री की नौटंकी की कलई खुल गई है।