हिमाचल न्यूज :-महंगी दवाइयों का दर्द: आम आदमी के संघर्ष और सरकार की जिम्मेदारी,आज के दौर में चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच आम आदमी के लिए एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। दवाइयों की आसमान छूती कीमतें उस इंसान के लिए सबसे बड़ी बाधा बनती हैं, जो पहले से ही अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए जूझ रहा है। मैंने अपने काम के दौरान कई ऐसे लोगों से मुलाकात की है, जिनके पास दवाइयां खरीदने के लिए पैसे नहीं होते। कुछ परिवार तो इस कदर मजबूर होते हैं कि वे इलाज करवाने के बजाय बीमारी के साथ जीना चुन लेते हैं, क्योंकि उनके पास महंगी दवाइयां खरीदने का विकल्प नहीं है।
मेरे जैसे समाजसेवी रोज़ ऐसे हालात का सामना करते हैं, जहां लोग मदद के लिए हाथ फैलाते हैं, लेकिन हर बार मदद कर पाना संभव नहीं होता। बालजिंदर सिंह, जो पिछले कई वर्षों से समाज की सेवा में जुटे हैं, कहते हैं, “हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी लोगों की सेवा करना है, लेकिन जब किसी बीमार मां की आंखों में दवा न खरीद पाने की बेबसी दिखती है, तो दिल भारी हो जाता है। सरकार से हमें उम्मीद होती है कि वह ऐसे गरीबों के लिए कुछ कदम उठाएगी।”सरकारी अस्पतालों में दवाइयों की भारी कमी ने भी लोगों की परेशानियों को बढ़ा दिया है। अक्सर देखा गया है कि लोग सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने जाते हैं, लेकिन उन्हें जरूरी दवाइयां बाहर से खरीदनी पड़ती हैं, जो उनके बजट से बाहर होती हैं। एक गरीब व्यक्ति, जो पहले ही स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहा है, उसे महंगी दवाइयों की मार झेलनी पड़ती है। क्या यह सही है कि हमारे समाज के सबसे कमजोर वर्ग को इतनी बड़ी कठिनाई से गुजरना पड़े?
कहीं न कहीं, जिम्मेदारी सरकार की भी है
सरकार ने सस्ते दवाइयों के लिए जनऔषधि केंद्र खोले हैं, लेकिन ये सिर्फ कुछ ही जगहों तक सीमित हैं। सभी जगहों पर इन केंद्रों की पहुंच नहीं है। यहां तक कि जो केंद्र मौजूद हैं, उनमें भी हर प्रकार की जरूरी दवाइयां उपलब्ध नहीं होतीं। अगर दवाइयों की कीमतों पर सख्त नियंत्रण नहीं किया गया और हर जरूरतमंद तक सस्ती दवाइयां नहीं पहुंचाई गईं, तो हालात और भी बिगड़ सकते हैं।
एक दिल छूने वाला अनुभव
कुछ समय पहले मेरी मुलाकात एक बुजुर्ग महिला से हुई, जो अपने बेटे के इलाज के लिए अस्पताल आई थी। उसके बेटे को एक गंभीर बीमारी थी और डॉक्टर ने दवाइयों की एक लंबी सूची दी थी। उसकी आंखों में डर और बेबसी साफ दिखाई दे रही थी। उसने मुझसे कहा, “बेटा, मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं ये दवाइयां खरीद सकूं। क्या मेरे बेटे का इलाज ऐसे ही रह जाएगा?” यह सवाल सिर्फ उसका नहीं था, बल्कि समाज के हर उस इंसान का था, जो महंगी दवाइयों से जूझ रहा है।
बालजिंदर सिंह जैसे समाजसेवी यह समझते हैं कि सिर्फ जागरूकता से ही हम इस समस्या को हल नहीं कर सकते। उन्होंने कई बार अपनी तरफ से दवाइयां खरीदकर लोगों की मदद की है, लेकिन यह समाधान स्थायी नहीं हो सकता। “हमें एक स्थायी समाधान की जरूरत है,” बालजिंदर कहते हैं। “सरकार को सख्त कदम उठाने चाहिए ताकि हर नागरिक को सस्ती और आसानी से उपलब्ध दवाइयां मिल सकें।”महंगी दवाइयों का यह मुद्दा किसी एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे समाज का है। जब तक सरकार सख्त नीति बनाकर दवाइयों की कीमतों पर नियंत्रण नहीं करती और सरकारी अस्पतालों में मुफ्त या सस्ती दवाइयां उपलब्ध नहीं कराती, तब तक लाखों लोग इलाज से वंचित रहेंगे। यह हमारी सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह सभी नागरिकों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ और सस्ता बनाए।