बद्दी,स्वास्तिक गौतम:- शिव परिवार का जिसके सिरपर आशीर्वाद हो वह व्यक्ति आशीर्वाद वह व्यक्ति भक्ति में लीन रहता है : सुमित सिंगला
क्योरटेक प्रांगण में श्री गणेश उत्सव धूम धाम से मनाया गया गणपति बप्पा का आगमन रिद्धि सिद्धि के पूजन के पश्चात सनातन धरम की रीतियों से मूर्ती की प्राण प्रतिष्ठा का स्थापना पर्यावरण के लिए हानिकारक प्लास्टर ऑफ़ पेरिस जैसे केमिकल से बनी मूर्तियों का प्रयोग न करके मिट्टी से निर्मित मूर्तियों का प्रयोग करें : सुमित सिंगला घरों व व्यवसायक स्थल पर श्री गणेश की मूर्ती की ईशान कोन में करनी चाहिए : पंडित संजय शास्त्री
श्री गणपति चतुर्थी उत्सव पर क्योरटेक हाउस प्रांगण में श्री गणेश बप्पा की वियतनाम के संगमरमर से बनी मूर्ति की मूर्ती प्राण प्रतिष्ठा सनातन धर्म की मर्यादायों के अनुरूप रिद्धि सिद्धि पूजन के पश्चात प्रसिद्ध शास्त्री पंडित संजय द्वारा पूजन कर किया गया। इस अवसर पर हवन किया गया जिसमें क्योरटेक परिवार के सदस्यों ने पवित्र आहुतियां डालीं। इस अवसर पर क्योरटेक ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर सुमित सिंगला ने बताया कि शिव परिवार का जिसके सिर पर आशीर्वाद हो वह व्यक्ति सदैव भक्ति में लीन रहता है. उन्होंने कहा कि श्री गणपति उत्सव भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी के सिद्धि विनायक स्वरूप की पूजा की जाती है। इस अवसर पर भव्य कढ़ी चावल पकोड़ों का लंगर वितरित किया गया। शास्त्रों के अनुसार इस दिन गणेश जी दोपहर में अवतरित हुए थे, इसलिए यह गणेश चतुर्थी विशेष फलदायी बताई जाती है।सनातन धर्म के त्योहारों में गणेश चतुर्थी एक मुख्य त्योहार है जो भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी के दिन मनाया जाता है। वैसे तो प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, गणेश जी के पूजन और उनके नाम का व्रत रखने का विशिष्ठ दिन है, लेकिन भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी के सिद्धि विनायक स्वरूप की पूजा की जाती है। पूरे देश में यह त्योहार गणेश उत्सव के नाम से प्रसिद्ध है लोक भाषा में इस त्योहार को डंडा चौथ भी कहा जाता है।
हिंदू धर्म में भगवान गणेश को विद्या-बुद्धि के प्रदाता, विघ्न-विनाशक, मंगलकारी, सिद्धिदायक, सुख-समृद्धि और यश-कीर्ति देने वाले देवता माना गया है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ‘ॐ’ और स्वास्तिक को भी साक्षात गणेश जी का स्वरूप माना गया है। गणेश जी की जन्म कथा गणेश चतुर्थी की कथा के अनुसार,एक बार माता पार्वती ने स्नान के लिए जाने से पूर्व अपने शरीर के मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसे गणेश नाम दिया। पार्वती जी ने उस बालक को आदेश दिया कि वह किसी को भी अंदर न आने दे, ऐसा कहकर पार्वती जी अंदर नहाने चली गई। जब भगवान शिव वहां आए , तो बालक ने उन्हें अंदर आने से रोका और बोले अन्दर मेरी माँ नहा रही है, आप अन्दर नहीं जा सकते। शिवजी ने गणेशजी को बहुत समझाया, कि पार्वती मेरी पत्नी है। पर गणेशजी नहीं माने तब शिवजी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने गणेशजी की गर्दन अपने त्रिशूल से काट दी और अन्दर चले गये, जब पार्वतीजी ने शिवजी को अन्दर देखा तो बोली कि आप अन्दर कैसे आ गये। मैं तो बाहर गणेश को बिठाकर आई थी। तब शिवजी ने कहा कि मैंने उसको मार दिया। तब पार्वती जी रौद्र रूप धारण कर लिया और कहा कि जब आप मेरे पुत्र को वापिस जीवित करेंगे तब ही मैं यहाँ से चलूंगी
शिवजी ने पार्वती जी को मनाने की बहुत कोशिश की पर पार्वती जी नहीं मानी। सारे देवता एकत्रित हो गए सभी ने पार्वतीजी को मनाया पर वे नहीं मानी। तब शिवजी ने विष्णु भगवान से कहा कि किसी ऐसे बच्चे का सिर लेकर आये जिसकी माँ अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो। विष्णुजी ने तुरंत गरूड़ जी को आदेश दिया कि ऐसे बच्चे की खोज करके तुरंत उसकी गर्दन लाई जाये। गरूड़ जी के बहुत खोजने पर एक हथिनी ही ऐसी मिली जो कि अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही थी। गरूड़ जी ने तुरंत उस बच्चे का सिर लिया और शिवजी के पास आ गये। शिवजी ने वह सिर गणेश जी के लगाया और गणेश जी को जीवन दान दिया,साथ ही यह वरदान भी दिया कि आज से कही भी कोई भी पूजा होगी उसमें गणेशजी की पूजा सर्वप्रथम होगी। इसलिए हम कोई भी कार्य करते है तो उसमें हमें सबसे पहले गणेशजी की पूजा करनी चाहिए, अन्यथा पूजा सफल नहीं होती।
मान्यता है कि भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ था. इसलिए इस दिन को गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. एक अन्य कहानी के मुताबिक, एक बार भगवान शिव कहीं गए हुए थे और देवी पार्वती स्नान करने जा रही थीं. स्नानगृह की रक्षा के लिए उन्होंने अपने शरीर पर लगे चंदन से एक मूर्ति बनाई और उसमें प्राण डाल दिए. जब भगवान शिव वापस आए, तो पार्वती ने उन्हें बताया कि बालक ने उन्हें अंदर नहीं आने दिया. एक और कथा के मुताबिक, गुस्से में भगवान शिव ने गणेश जी का सर धड़ से अलग कर दिया था. इसके बाद माता पार्वती की नाराज़गी को दूर करने के लिए शिव जी ने गणेश जी को हाथी का मस्तक लगाकर जीवनदान दिया था. एक कहानी के मुताबिक, गणेश जी को लगा कि चंद्रमा उनका उपहास कर रहे हैं. क्रोध में आकर भगवान श्रीगणेश ने चंद्रमा को काले होने का श्राप दे दिया था ।