जम्मू कश्मीर,नवीन पाल:- शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करने का केवल आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व ही नहीं अपितु वैज्ञानिक कारण भी है- डॉ. अभिषेक कुमार उपाध्याय श्रावण माह में भगवान भोलेनाथ की पूजा करने के परिपेक्ष में हमारे धर्मग्रंथों में अलग-अलग मान्यताएं एवं कथाएं प्रचलित हैं। इस विषय पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए श्री 1008 श्री मौनी बाबा चैरिटेबल ट्रस्ट (न्यास) के मुख्य न्यासी एवं जम्मू कश्मीर प्रान्त के मन्दिर व गुरुकुल योजना सेवा प्रमुख डॉ. अभिषेक कुमार उपाध्याय ने बताया कि भगवान भोलेनाथ एवं उन पर विशेष अवसरों पर होने वाले रुद्राभिषेक तथा पूजन, अर्चन के विषय में हमारे धर्मग्रंथों में बहुत वर्णन मिलता है। ऐसे तो श्रावण मास का आध्यात्मिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से भी बहुत महत्व है।आध्यात्मिक स्वतंत्रता का संदेश वाहक है श्रावण मास। यह भूत भावन भगवान भोलेनाथ को बहुत प्रिय है क्योंकि इसी अवसर पर प्रकृति अपने संपूर्ण रस और रंगों के साथ अठखेलियां करती है।
श्रावण एक अवसर देता है कि हम अपने अंदर काम कर रही प्रकृति की शक्तियों को समझकर कर भक्ति भाव से जगत नियंता की शक्ति से जुड़ जाए। हम हंसते खेलते, खाते-पीते, पढ़ते-लिखते शारीरिक एवं मानसिक रूप से विकसित होते है तो हमें यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि हम प्राकृतिक शक्तियों के अधीन हैं। वह हमें बाध्य करती हैं। लेकिन जब हम आध्यात्मिक रूप से जाग जाते हैं तभी शिव शक्ति से मिलन होती है। लेकिन इस मिलन के बाद हमे नियंत्रण और ऊर्जा की आवश्यकता होती है। जो इस अवसर पर किए गए तप, ध्यान और चिंतन से ही प्राप्त होता है। श्रावण मास ही इसके लिए सबसे अनुकूल है। माता पार्वती ने तप और ध्यान से शिव को पाया, इसलिए मनुष्य भी दिव्य प्रकृति और उसके परम सत्य को जानने का अधिकारी है। श्रावण हमें उस परम सत्य को जानने के लिए आध्यात्मिक स्वतंत्रता का संदेश भी देता है।
अब हम इस विषय पर गंभीरता से विचार करे तो बहुत से प्रश्न मानव मन में उत्पन्न होता है। श्रावण मास में विशेष रूप से अभिषेक करने की परंपरा कैसे आरम्भ हुई होगी हमारे शास्त्रों में इसका उल्लेख मिलता है जिसका आगे वर्णन किया गया है। श्रावण भगवान शिव एवं शक्ति की महिमा से भरा है। महादेव की तरह श्रावण मास भी गर्मी से तपती धरती को वर्षा की पवित्र जल से तृप्त करता है। जीव-जंतु और प्रकृति का यह सृजन का काल है। यदि हम इस अवसर का आनन्द लेना चाहते है तो अपने अंदर से ईष्या, द्वेष, भय, क्रोध और अहंकार को कम करके नियंत्रित करना होगा एवं साथ ही अपने हृदय को निर्मल और पवित्र बनाना होगा। जब हमारे आचरण में सरलता, आनंद, पवित्रता और प्रेम का गुण होगा, तभी हम प्रकृति स्वरूप में स्थित शिव शक्ति का दर्शन कर पाएंगे।
ऐसे तो आशा और जीवन का प्रतीक है के रूप में श्रावण माह का महत्व और भी बढ़ जाता है। श्रावण रस का माह है। रसीले फलों के साथ वर्षा की फुहार तन-मन को संतुष्ट करती है। यह भावना यदि हृदय तक नहीं पहुंच पा रही है, तो इसका तात्पर्य है कि हम शिव तत्व से दूर हैं। ऐसे में इस महीने को यूं ही नहीं जाने देना चाहिए। इस अवसर पर नित्य भगवान की पूजा पाठ एवं अर्चन करके स्वयं अंतर्मन में परिवर्तन करना चाहिए। परिवर्तन प्रकृति की विशेषता है और इस परिवर्तन में ही शिव और शक्ति की कृपा प्राप्त होती है। श्रावण में जिए यदि सावन भीतर सम्माहित हो जाए और इसकी हरियाली को जब हम स्पर्श करेंगे, तो जीवन में रस ही रस आएगा। प्रकृति श्रावण में रस का भरपूर बौछार करती है।
हमें उस रस का स्वाद लेना चाहिए।शिव-शक्ति को समर्पित यह श्रावण मास सृजन का आधार तत्वों को भरपूर विखेरता है। सृजन के लिए प्रेम और पवित्रता का भाव जरूरी है। इसका हर दिन व्रत और पर्व को समर्पित है। चूंकि शक्ति से ही शक्तिमान हैं। इस कारण भोलेनाथ की विशेज पूजा श्रावण के प्रत्येक सोमवार और हर मंगलवार को मंगलागौरी व्रत का अनुष्ठान करना चाहिए है। श्रावण के मंगलवार को होने के कारण इसे मंगलागौरी व्रत कहा जाता है। शक्ति के साथ शिव कल्याणकारी हों, इसलिए श्रावण पूरी तरह से शिव-शक्ति को समर्पित महीना है। शिवपुराण में वर्णित एक प्रसंगानुसार श्रावण मास में ही समुद्र मंथन से 14 रत्न प्राप्त हुए थे, जिसमे निकले हलाहल विष से सृष्टि को बचाने हेतु भगवान भोलेनाथ ने देवताओं के निवेदन पर विषपान किया। विष को गले में धारण करने के कारण उनका कण्ठ नीला पड़ गया तभी से उन्हें नीलकंठ नाम से भी प्रसिद्धि मिली।
भोलेनाथ के कंठ में हो रहे विष के ताप को कम करने हेतु सभी देवताओं द्वारा जल व ठंडी वस्तुओं से मासभर अभिषेक किया गया। इसी कारण रुद्राभिषेक में जल, दूध, दही व ठंडी वस्तुओं का विशेष स्थान हैं। जब चातुर्मास में जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं तब सृष्टि की समस्त व्यवस्था भूत भावन भगवान भोलेनाथ के अधीन हो जाती हैं। इसीलिए श्रावण मास में भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए रुद्राभिषेक, शिवार्चन, हवन, धार्मिक कार्य, दान, उपवास किये जाते है। आजकल सनातन धर्म में विकृति पैदा करने की दृष्टि से यथा कथित समाज सुधारकों एवं पढ़े लिखे लागों द्वारा समाज में धर्म और संस्कृति से जनमानस को दूर करने की सोच से अफवास एवं कुतर्क भरी बातें की जा रही है कि शिवलिंग पर दूध चढ़ाने क्या होता है। महादेव को दूध की कुछ बूंदें ही चढाकर शेष दूध निर्धन बच्चों को दे दिया जाए।
सुनने में यह बात बहुत अच्छी लगती है लेकिन हमारे ही पर्व त्यौहारों पर ऐसी ज्ञान की बाते क्यों की जा रही है जरा आप सब विचार करे। यह एक अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र है सनातन धर्म एवं संस्कृति के लिए। इसीलिए आजकल हमारे प्रमुख त्यौहारों पर अलग निर्देश दिए जाते है लेकिन वही अन्य समाज और देश विदेश में सालों साल बम धमाके और मिसाइल से युद्ध होने से कोई खतरा नहीं है। दीवाली पर पटाखे ना चलाएं, होली में रंग और गुलाल ना लगाए इसमें पानी अधिक बर्बाद होता है, सावन में दूध ना चढ़ाएं, उस पैसे से गरीबों की मदद करें, लेकिन आप अपनी प्राचीन संस्कृति और आध्यात्म को गहनता से विचार करे तो पाएंगे कि विश्व की सबसे समृद्ध जीवन्त परम्परा वर्तमान में केवल हमारे पास ही है और यथावत बनी है। रुद्राभिषेक जैसे अनुष्ठान सिर्फ संस्कृति का हिस्सा ही नहीं है, बल्कि इसका वैज्ञानिक पहलू भी उपलब्ध है। हमारे यहां श्रावण मास एवं विशेष अनुष्ठानों पर भोलेनाथ के पूजन अर्चन में होने वाले रुद्राभिषेक की बात करे तो इसका वैज्ञानिक महत्व भी कम नहीं है। श्रावण मास में शिवलिंग पर जल अर्पित करने के पीछे धार्मिक ही नहीं अपितु वैज्ञानिक कारण भी स्पष्ट है। कहीं न कहीं हमारी सनातन परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है। जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है, वो तो चिर सनातन है।
हमारे संस्कार और परम्परा में विज्ञान को भी परम्पराओं का रूप इसलिए दिया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए। ऐसे तो हम भारतवासी सदा से ऋषियों द्वारा संचालित वैज्ञानिक जीवन जीते ही है। यदि हम शिवलिंग की बात करे तो यह और कुछ नहीं बल्कि न्यूक्लियर रिएक्टर्स ही हैं, तभी शिवलिंग पर दूध, जल एवं तरल पदार्थ अर्पित किए जाते हैं जिससे कि रेडियो एक्टिव रिएक्टर्स को समाप्त किया जा सके और वह शांत रहें। महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे कि बिल्वपत्र, आक, आकमद, धतूरा, गुड़हल आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले पदार्थ है। शिवलिंग पर चढ़ा जल भी रिएक्टिव हो जाता है इसीलिए जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता। भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह ही है।आयुर्वेद के अनुसार इन दिनों में स्वास्थ्य की दृष्टि से दूध का कम से कम सेवन करना चाहिए, जिससे मौसमानुसार शरीर में वात और कफ न बढे और हमारा शरीर निरोगी रहे। महादेव ने जगत कल्याण हेतु विषपान किया था।शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है। शिवलिंग का विधिवत अभिषेक करने पर अभीष्ट कामना की पूर्ति होती है, इसमें कोई संदेह नहीं। यदि हम किसी भी स्वयंभू अथवा नियमित रूप से पूजे जाने वाले किसी भी प्राचीन शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करते है तो बहुत ही उत्तम फल मिलता है।
इससे भी अधिक फल तब बढ़ जाता है जब हम हमने पूजित बारह ज्योतिर्लिंगों में से किसी भी एक शिवलिंग का अभिषेक कर ले तो बहुत ही शीघ्र चमत्कारिक एवं शुभ परिणाम मिल जाता है। ऐसे भी अन्य पूजा पाठ की अपेक्षा रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र प्राप्त होता है। इससे हमारी कुंडली के महापातक ग्रहों की दृष्टि से भी छुटकारा मिल जाता है और हममें शिवत्व का उदय होता है। भगवान भोलेनाथ का शुभाशीर्वाद प्राप्त होता है। सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसी मान्यता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है। हमारे धर्म शास्त्रों में और विशेषकर शिवपुराण में अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए विशिष्ट द्रव्यों से किए जाने वाले रुद्राभिषेक का विभिन्न लाभ भी मिलता है ऐसा वर्णन किया गया है- जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है। असाध्य रोगों को शांत करने के लिए कुशोदक से, भवन-वाहन के लिए दही से, लक्ष्मी प्राप्ति के लिए गन्ने के रस से, धनवृद्धि के लिए शहद एवं घी से, तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। इत्र मिले जल से करने से बीमारी नष्ट होती है। पुत्र प्राप्ति के लिए दुग्ध से और यदि संतान उत्पन्न होकर मृत पैदा हो तो गोदुग्ध से रुद्राभिषेक करें।रुद्राभिषेक से योग्य तथा विद्वान संतान की प्राप्ति होती है। ज्वर की शांति हेतु शीतल जल/गंगाजल से रुद्राभिषेक करें।सहस्रनाम मंत्रों का उच्चारण करते हुए घृत की धारा से करने पर वंश का विस्तार होता है। शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने पर जड़बुद्धि वाला भी विद्वान हो जाता है। सरसों के तेल से करने पर शत्रु पराजित होता है। शहद के द्वारा अभिषेक करने पर यक्ष्मा (तपेदिक) दूर हो जाती है। पातकों को नष्ट करने की कामना होने पर भी शहद से, गोदुग्ध से तथा शुद्ध घी द्वारा करने से आरोग्यता प्राप्त होती है। ऐसे तो अभिषेक साधारण रूप से जल से ही होता है। परंतु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों में मंत्र, गोदुग्ध या अन्य द्रव्य मिलाकर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है। तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है।
इस प्रकार विविध द्रव्यों से शिवलिंग का विधिवत अभिषेक करने पर अभीष्ट कामना की पूर्ति होती है। शास्त्रों में विद्वानों ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। शिव पुराण एवं अन्य पुराणों में तो इससे सम्बन्धित अनेक कथाओं का विवरण भी प्राप्त होता है। इसमें रुद्राभिषेक के बारे में तो यहां तक कहा गया है कि रावण ने अपने दसों सिरों को काटकर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया था तथा सिरों को हवन की अग्नि को अर्पित कर दिया था जिससे वो त्रिलोकजयी हो गया। भस्मासुर ने शिवलिंग का अभिषेक अपनी आंखों के आंसुओं से किया तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बन गया। कालसर्प योग, गृहक्लेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यों की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है। ज्योतिर्लिंग क्षेत्र एवं तीर्थस्थान तथा शिवरात्रि प्रदोष, श्रावण के सोमवार आदि पर्वों में शिववास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है।
वस्तुत: शिवलिंग का अभिषेक भोलेनाथ को शीघ्र प्रसन्न करके साधक को उनका कृपापात्र बना देता है और उनकी सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं। अत: हम यह कह सकते हैं कि रुद्राभिषेक से मनुष्य के सारे पाप-ताप धुल जाते हैं। स्वयं सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है कि जब हम अभिषेक करते हैं तो स्वयं महादेव साक्षात उस अभिषेक को ग्रहण करते हैं। संसार में ऐसी कोई वस्तु, वैभव, सुख नहीं है, जो हमें रुद्राभिषेक करने या करवाने से प्राप्त नहीं हो सकता है। इसलिए आप सभी सनातन संस्कृति एवं धर्म में आस्था और विश्वास रखने वाले श्रद्धालु शिवभक्त यदि अभी तक रुद्राभिषेक नही कर पाए है तो आपने आस पास के शिवमन्दिर में या अपने घर पर भी अवश्य रुद्राभिषेक करे। भगवान भोलेनाथ आपकी सर्वविध कल्याण करेंगे इसी आशा से।लेखक – डॉ. अभिषेक कुमार उपाध्याय, मुख्य न्यासी श्री श्री 1008 श्री मौनी बाबा चैरिटेबल ट्रस्ट न्यास।