नगनौली न्यूज:- गाँव नगनौली के कृष्ण कुंज मोहल्ला में समस्त पंवार परिवार द्वारा आयोजित ‘श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ’ के पंचम दिवस में भगवान की अनन्त लीलाओं में छिपे गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों को कथा प्रसंगों के माध्यम से उजागर करते हुए दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक एवं संचालक ‘श्री आशुतोष महाराज जी’ की शिष्या सुश्री गौरी भारती जी ने बाल-लीला के विभिप प्रसंगों को आध्यात्मिक रहस्यों सहित समझाया।
अवजानन्ति मां मूढा मानुषी तनुमाश्रितम्। परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्।।अर्थात् इस संसार के मूढ़ बुद्धि लोग मुझे मनुष्य शरीर में देखकर साधारण मनुष्य समझ लेते हैं पर वे मेरे परम भाव को नहीं जानते कि मैं ही सभी भूत प्राणियों का स्वामी हूँ, गोकुल की गलियों में दौड़ते हुए इस गोप बालक को देखकर कौन कह सकता है कि वे परमात्मा है। वन में अपनी पत्नी के खो जाने पर विलाप करते हुए वृक्षों व लताओं से अपनी पत्नी के समाचार पूछने वाले वनवासी प्रभु राम को देखकर भला कौन कह सकता है कि यही परमात्मा हैं। परमात्मा की लीलाएं सदैव मनुष्य के लिए रहस्य बनी रहीं हैं क्योंकि वह परमात्मा को अपनी बुद्धि के द्वारा समझना चाहता है, जो संभव नहीं। इसलिए रावण, कंस, दुर्योधन जैसे लोग भी प्रभु की लीलाओं से धोखा खा गए। प्रभु की प्रत्येक लीला में आध्यात्मिक रहस्य छुपा होता है, जिनका उद्देश्य मनुष्य को आध्यात्मिक मार्ग की ओर प्रेरित करना है। जब एक मनुष्य पूर्ण सतगुरु की कृपा से ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करता है तब उसके अंदर में ही इन लीलाओं में छिपे हुए आध्यात्मिक रहस्य प्रकट होते हैं तथा पूर्ण सतगुरु की कृपा से ही वह इन रहस्यों को समझ पाता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के घरों से माखन चोरी की, इस घटना के पीछे भी आध्यात्मिक रहस्य है। दूध का सार तत्व माखन है। उन्होंने गोपियों के घर से केवल माखन चुराया अर्थात् सार तत्व को ग्रहण किया और असार को छोड़ दिया। प्रभु हमें समझाना चाहते हैं कि सृष्टि का सार तत्व परमात्मा है। इसलिए असार संसार के नश्वर भोग पदार्थों की प्राप्ति में अपने समय, साधन और सामर्थ्य को अपव्यय करने की अपेक्षा हमें अपने अंदर स्थित परमात्मा को प्राप्त करना चाहिए। इसी से जीवन का कल्याण संभव है।सुश्री गौरी भारती जी ने गोवंश में आ रही क्षीणता पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गौ की रक्षा व हित संवर्धन के लिए स्वयं परमात्मा इस धरती पर आते हैं पर उनकी सन्तान इस सेवा से क्यों वंचित हैं? वैदिक काल से मानव जीवन का आधार यज्ञ, दान व तप को माना गया है। यदि गहराई से विचार किया जाए तो इन सब का आधार सिर्फ गौ ही है। यदि भारतीय संस्कृति की व्याख्या संक्षेप में करनी हो तो यह गौ रूप है। गौ जैसा परोपकारी जीव हमें मेहनत व शांत जीवन जीने की प्रेरणा देता है। गौ प्रेम कारण ही हमारे देश में गोकुल, गोवर्धन, गोपाल इत्यादि नाम प्रचलित हैं। प्राचीन भारत में गाय प्रेम की अद्भुत उदाहरण हमें प्रत्यक्ष नजर आती है। गायों की संख्या के आधार पर ही भारतीय किसानों को नंद, उपनंद व नंदराज इत्यादि नाम दिए जाते थे। महापुरुषों ने जहां संसार में मानवता की रक्षा की बात की है वहीं उन्होंने गौ रक्षा को भी श्रेष्ठ स्थान प्रदान किया है। गौ के संबंध में हमारे शास्त्रें में कहा गया है कि गौ वध करने योग्य नहीं है। गाय वध करने वाले के लिए मौत की सजा सुनाई गई है। भारत की संपन्नता गाय के साथ जुड़ी हुई है। गाय मानव का सच्चा साथी है। बड़े दु:ख की बात ही कि देश में पूजा योग्य गाय की हालत अति दयनीय है। आज पशु मेलों के नाम पर करोड़ों की संख्या में हमारा पशु धन बूचडख़ानों में पहुँचता है जहाँ पहुँचकर उनकी अंतिम या होती है। सदियों से अहिंसा का पुजारी भारत देश आज हिंसक व मांस निर्यातक देश के रूप में उभरता जा रहा है।
देश के विभाजन से पहले देश में केवल 300 बूचडख़ाने थे परन्तु आज देश में बूचडख़ाने काफी अधिक हैं। इससे बढक़र देश का दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि देश में अनमोल गौवंश की हत्या लगातार जारी है। आज देश में कानूनी व गैर-कानूनी तौर पर हजारों ही बूचडख़ाने चल रहे हैं जिनमें प्रतिदिन लाखों की संख्या में पशुओं को काटा जा रहा है। यदि गौवंश के वध पर रोक न लगाई गई तो देश में गौ माता एवं गौ धन बिल्कुल खत्म हो जाएगा।साध्वी जी ने कहा कि मानव के ऊपर परमात्मा की यह बहुत बड़ी कृपा है कि उसे शरीर के लिए आवश्यक स्वर्ण गाय के दूध से प्राप्त हो जाता है। पंचगव्य (दूध, दही, गोबर, मूत्र, घी) का सेवन करके लाईलाज रोगों से भी छुटकारा प्राप्त हो सकता है। वैज्ञानिकों ने भी यह सिद्ध किया है कि गौमूत्र में ऐंटीसेप्टिक तत्व पाए जाते हैं जिसके द्वारा 400 से भी ज्यादा बीमारियों का ईलाज किया जा सकता है। उन्होंने कथा दौरान कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने गौवंश के साथ प्रेम करके समस्त मानव जाति को गौ प्रति उदार बनने की प्रेरणा प्रदान की है। यह हमारा राष्ट्रीय कर्त्तव्य बनता है कि हम गोवंश का वर्धन करे और भारतीय मानबिन्दुओं की रक्षा करें। कथा में विशेष रूप में केवल सिंह, ओंकार नाथ उद्योगपति,कृष्ण देव राय शर्मा,रामपाल,कुलदीप पाल सिंह,सतपाल सिंह,अश्वनी कुमार,अनिल कुमार,
कुलवीर,महेंद्र सिंह कमल सिंह,सच ठाकुर मस्तान सिंह,संजीव कुमार महिपाल सिंह,अरुण कुमार अशोक कुमार,विकास पूरी
मुल्खराज,प्रदीप राज,दिक्षित, भारी मात्रा में श्रद्धालुगण शामिल थे।