Wednesday, February 5, 2025
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सावित्री बाई फुले जयंती : जीवन और योगदान

ऊना:- भारत की पहली महिला टीचर सावित्रीबाई फुले की 194वीं जयंती है। सावित्री बाई फुले को भारत की पहली शिक्षिका माना जाता है। उन्होंने यह अविश्वसनीय उपलब्धि तब हासिल की जब महिलाओं का पढ़ना लिखना तो दूर, उनका घर से निकलना भी मुश्किल था। महाराष्ट्र में महिलाओं की शिक्षा के प्रति अपना जीवन समर्पित करने वाली सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक छोटे से गांव नयागांव में 3 जनवरी 1831 को हुआ था। वह दलित परिवार में जन्मी थीं। सावित्रीबाई न केवल एक समाज सुधारक थीं, बल्कि वह एक दार्शनिक और कवयित्री भी थीं। उनकी कविताएं अधिकतर प्रकृति, शिक्षा और जाति प्रथा को खत्म करने पर केंद्रित होती थीं। ऐसे वक्त में जब देश में जाति प्रथा अपने चरम पर थीं, तो उन्होंने अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा दिया। सावित्रीबाई फुले के अनमोल विचार_

1.शिक्षा स्वर्ग का द्वार खोलती है, स्वयं को जानने का अवसर देती है।
2.स्वाभिमान से जीने के लिए पढ़ाई करो, पाठशाला ही इंसानों का सच्चा गहना है।

  1. उसका नाम अज्ञान है। उसे धर दबोचो, मज़बूत पकड़कर पीटो और उसे जीवन से भगा दो।
  2. बेटी के विवाह से पहले उसे शिक्षित बनाओ ताकि वह आसानी से अच्छे बुरे में फर्क कर सके।
  3. ज्ञान के बिना सब कुछ खो जाता है, बुद्धि के बिना हम पशु बन जाते हैं। ज्ञान के दीपक से मन को रोशन करो।
  4. पितृसत्तात्मक समाज यह कभी नहीं चाहेगा कि स्त्रियां उनकी बराबरी करें। हमें खुद को साबित करना होगा।
  5. अन्याय, दासता से ऊपर उठना होगा। कलम तलवार से भी अधिक शक्तिशाली है, खासकर जब इसका उपयोग शिक्षा के लिए किया जाता है। जब वह महज 9 वर्ष की थीं जब उनका विवाह 13 साल के ज्योतिराव फुले से कर दिया गया था। जिस समय सावित्रीबाई फुले की शादी हुई थी उस समय वह अनपढ़ थीं। पढ़ाई में उनकी लगन देखकर ज्योतिराव फुले प्रभावित हुए और उन्होंने सावित्रीबाई को आगे पढ़ाने का मन बनाया। ज्योतिराव फुले भी शादी के दौरान कक्षा तीन के छात्र थे, लेकिन तमाम सामाजिक बुराइयों की परवाह किए बिना सावित्रीबाई की पढ़ाई में पूरी मदद की। सावित्रीबाई ने अहमदनगर और पुणे में टीचर की ट्रेनिंग ली और शिक्षक बनीं। पति के साथ मिलकर सावित्रीबाई फुले ने 1848 में पुणे में लड़कियों का स्कूल खोला। इसे देश में लड़कियों का पहला स्कूल माना जाता है। फुले दंपति ने देश में कुल 18 स्कूल खोले। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके योगदान को सम्मानित भी किया। इस स्कूल में सावित्रीबाई फुले प्रधानाध्यापिका थीं। ये स्कूल सभी जातियों की लड़कियों के लिए खुला था। दलित लड़कियों के लिए स्कूल जाने का ये पहला अवसर था। सावित्रीबाई ने विधवाओं के लिए एक आश्रम खोला। विधवाओं के अलावा वह निराश्रित महिलाओं, बाल विधवा बच्चियों और परिवार से त्यागी गई महिलाओं को शरण देने लगीं। सावित्रीबाई आश्रम में रहने वाली हर महिला और लड़कियों को भी पढ़ाती थीं। उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की, जो बिना पुजारी और दहेज के विवाह आयोजित करता था। अपने पति ज्योतिबा फुले, जो तब तक महात्मा फुले कहलाने लगे थे, की मृत्यु के बाद उनके संगठन सत्यशोधक समाज का काम सावित्रीफुले ने संभाल लिया और सामाजिक चेतना का काम करती रहीं। जाति और पितृसत्ता से संघर्ष करते उनके कविता संग्रह छपे। उनकी कुल चार किताबें हैं। सावित्रीबाई को “आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत” माना जाता है। पुणे में प्लेग फैला तो सावित्रीबाई फुले मरीजों की सेवा में जुट गईं। इसी दौरान उन्हें प्लेग हो गया और 1897 में उनकी मृत्य हो गई। उनके पति ज्योतिराव का निधन उनसे पहले 1890 में हो गया था। पति के निधन के बाद सावित्रीबाई फूले ने ही उनका दाह संस्कार किया था।
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