गग्रेट/अंबोआ संजीव डोगरा
डेरा बाबा हरि शाह अंबोआ दरबार में बाबा राकेश शाह जी के सानिध्य में चल रही 25वीं श्रीमद् गौ भागवत कथा का आज विधिवत रूप से समापन हो गया।आज अंतिम दिवस पर सुदामा चरित्र व परीक्षित मोक्ष की कथा कृष्ण कन्हैया जोशी जी द्वारा संगीतमय ढ़ंग से सुनाई गई।
कथा में भगवान कृष्ण की लीलाओं का भावपूर्ण वर्णन किया गया। जिसमें भजन’अरे द्वारपालो कन्हैया से कह दो कि दर पे सुदामा गरीब आ गया है’पर भाव विभोर हो श्रोताओं की आंखों से अश्रुधार बही और कथा मे उनके चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि उज्जैन (अवंतिका) में स्थित ऋषि सांदीपनि के आश्रम में बचपन में भगवान श्रीकृष्ण और बलराम पढ़ते थे। वहां उनके कई मित्रों में से एक सुदामा भी थे। सुदामा के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। कहते हैं कि सुदामा जी शिक्षा और दीक्षा के बाद अपने ग्राम अस्मावतीपुर (वर्तमान पोरबन्दर) में भिक्षा मांगकर अपना जीवनयापन करते थे।
सुदामा एक गरीब ब्राह्मण थे। विवाह के बाद वे अपनी पत्नी सुशीला और बच्चों को बताते रहते थे कि मेरे मित्र द्वारिका के राजा श्रीकृष्ण है जो बहुत ही उदार और परोपकारी हैं।
यह सुनकर एक दिन उनकी पत्नी ने डरते हुए उनसे कहा कि यदि आपने मित्र साक्षात लक्ष्मीपति हैं और उदार हैं तो आप क्यों नहीं उनके पास जाते हैं। वे निश्चित ही आपको प्रचूर धन देंगे जिससे हमारी कष्टमय गृहस्थी में थोड़ा बहुत तो सुख आ जाएगा।
सुदामा संकोचवश पहले तो बहुत मना करते रहे लेकिन पत्नी के आग्रह पर एक दिन वे कई दिनों की यात्रा करके द्वारिका पहुंच गए। द्वारिका में द्वारपाल ने उन्हें रोका। मात्र एक ही फटे हुए वस्त्र को लपेट गरीब ब्राह्मण जानकर द्वारपाल ने उसे प्रणाम कर यहां आने का आशय पूछा। जब सुदामा ने द्वारपाल को बताया कि मैं श्रीकृष्ण को मित्र हूं दो द्वारपाल को आश्चर्य हुआ। फिर भी उसने नियमानुसर सुदामा जी को वहीं ठहरने का कहा और खुद महल में गया और श्रीकृष्ण से कहा, हे प्रभु को फटेहाल दीन और दुर्बल ब्राह्मण आपसे मिलना चाहता है जो आपको अपना मित्र बताकर अपना नाम सुदामा बतलाता है। जहां नंगे पाँव श्रीकृष्ण दौड़ते हुए उनके मित्र के पास पहुंचते है और उन्हें अपने गले से लगा लेते हैं।
कथा वाचक ने श्रीमद भागवत कथा का विश्राम राजा परीक्षित के मोक्ष के प्रसंग के साथ किये । उन्होंने कहा कि – राजा परीक्षित ने सात दिन तक मन से कथा श्रवण किया। परीक्षित को ऋषि के श्राप के कारण तक्षक नाग ने काटा और उनके जीवन का अंत हो गया। कथा के प्रभाव से उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ और नाम अजर-अमर हो गया।
कथा वाचक कृष्ण कन्हैया जोशी ने कहा कि कथा के श्रवण प्रवचन करने से जन्मजन्मांतरों के पापों का नाश होता है और विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। कथा में प्रवचन देते हुए कहा कि संसार में मनुष्य को सदा अच्छे कर्म करना चाहिए, तभी उसका कल्याण संभव है। माता-पिता के संस्कार ही संतान में जाते हैं। संस्कार ही मनुष्य को महानता की ओर ले जाते हैं। श्रेष्ठ कर्म से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है। अहंकार मनुष्य में ईष्र्या पैदा कर अंधकार की ओर ले जाता है। व्यक्ति थोड़े ही धन प्राप्त कर अपने आप को धनी समझने लगता है और अहंकार पूर्ण कार्य करते हुए अपने आप को अंतिम मे नष्ट कर डालता है जहाँ उसका कमाया हुआ धन किसी काम का नहीं आता है। मनुष्य को सदा सतकर्म करना चाहिए। उसे फल की चिंता ईश्वर पर छोड़ देनी चाहिए।